रितेश कक्षा तीसरी में पढ़ता था । उसके पास तीन छोटे प्यारे-प्यारे खरगोश थे। रितेश अपने खरगोशों को बहुत प्यार करता था। वह स्कूल जाने से पहले पार्क से हरे-भरे कोमल घास लाकर अपने खरगोशों को खिलाता था और फिर स्कूल जाता था। स्कूल से आकर भी उनके लिए घास लाता था।
एक दिन की बात है कि रितेश को स्कूल के लिए देरी हो रही थी। वह घास नहीं ला सका और स्कूल चला गया। जब स्कूल से आया तो खरगोश अपने घर में नहीं थे। रितेश ने खूब ढूंढा परंतु कहीं नहीं मिला। सब लोगों से पूछा मगर खरगोश कहीं भी नहीं मिले।
रितेश उदास हो गया। रो-रो कर आंखें लाल हो गई। रितेश अब पार्क में बैठ कर रोने लगा। कुछ देर बाद वह देखता है कि उसके तीनों खरगोश घास खा रहे थे और खेल रहे थे। रितेश को खुशी हुई और वह समझ गया कि इनको भूख लगी थी इसलिए यह पार्क में आए हैं। मुझे भूख लगती है तो मैं मां से खाना मांग लेता हूं पर इनकी तो मां भी नहीं है। उसे दुख भी हुआ और खरगोश मिलने की खुशी भी हुई।
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नैतिक शिक्षा - जो दूसरों के दर्द को समझता है उसे दुख छू भी नहीं पाता।
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