प्रकृति कहती है/श्री सोहनलाल द्विवेदी

प्रकृति कहती है (poem)

पर्वत कहता शीश उठाकर, 

तुम भी ऊॅंचे बन जाओ।

सागर कहता है लहराकर, 

मन में गहराई लाओ।  


समझ रहे हो क्या कहती है, 

उठ-उठ, गिर-गिर तरल तरंग। 

भर लो, भर लो अपने मन में, 

मीठी-मीठी मृदुल उमंग।  


धरती कहती धैर्य न छोड़ो,

कितना ही हो सिर पर भार। 

नभ कहता है फैलो इतना, 

ढक लो तुम सारा संसार। 

श्री सोहनलाल द्विवेदी

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