शीर्षक- त्योहार
आज यह कैसा त्योहार आया
एक के सामने दूसरा चाँद आया
एक था जो धरती से दूर
उसे निहारता दूजा छ्तपूर।
पूजा की विधियाँ भिन्न थीं
दीया-बाती, रोली-चंदन अभिन्न थीं
यह सब नए रूप में सामने आया।
आज यह कैसा त्योहार आया।
केशों के जो झुरमुट थे,
सज्जा में हैं सजे हुए।
जो कपोल थे कुछ सिकुड़े
आज हैं वह भी खिले हुए।
मन हर्षाता, तन प्रफुल्लित हो आया।
आज यह कैसा त्योहार आया।
कभी चाँद से मिलने को मन
जब गोते खाने लगता हेै।
चकोर बना यह प्रेमी भी
उसके घर को चलता हेै।
वह आना-जाना,छुपना और छुपाना
यह सब अब कम हो आया
आज यह कैसा त्योहार आया।
आज यह कैसा त्योहार आया।।
स्वरचित- गोविन्द पाण्डेय, पिथौरागढ़, उत्तराखंड।
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करवा चौथ का त्यौहार
चाहत है की जनम जनम तक उनका दीदार हो
हमारे उनके बीच में एक ऐसा भी करार हो,
मुझे बस होता रहे हर रोज उनका दीदार,
मेरे लिए वो हर रोज करवा चौथ का त्यौहार हो ।
*आशीष कुमार शुक्ला*
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