लोहड़ी का त्यौहार माघ माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इसमें अग्नि देव की पूजा की जाती है और उसमें गुड़, तिल, रेवड़ी, मूंगफली, मक्का आदि का भोग लगाते हैं तथा आपस में मूंगफली, रेवड़ी बांटकर नाच गाने के साथ जश्न मनाया जाता है।
इस त्योहार को मनाने के पीछे जो कहानियां जुड़ी हैं, आज हम एक- एक करके उन कथाओं के बारे में जानेंगे।
# दुल्ला भट्टी की कथा
यह कहानी मुगल शासक अकबर के समय से जुड़ी हुई है। अकबर के समय में वहां के मुगल आक्रांता पंजाब से बड़े पैमाने पर हिंदू व सिख लड़कियों को अरब देशों में बेचा करते थे। वह उनसे गुलामों जैसा बर्ताव करते थे। उस समय पंजाब में दुल्ला पट्टी नाम का एक डाकू हुआ करता था। परंतु वह डाकू होने के साथ-साथ ही महिलाओं का सम्मान करता था और मुगलों के अत्याचार के विरुद्ध लड़ता था।
उसने मुगलों के चंबल से बहुत सारी लड़कियों को बिकने से बचाया, उनकी शादियां भी करवाई। एक बार सुंदर व मुंदर नाम की दो लड़कियां थी। जिन्हें उनके चाचा ने मुगलों को बेच दिया था। किंतु जैसे ही दुल्ला भट्टी को इसके बारे में पता चला तो उसने ना केवल उन दोनों लड़कियों को मुक्त कराया बल्कि उनकी शादियां भी करवाई। तभी से दुल्ला भट्टी की याद में लोहड़ी का पर्व मनाने की प्रथा शुरू हुई। उनका नाम आज भी लोहड़ी के गीतों में लिया जाता है।
सुंदर मुंदरिए हो
तेरा कौन विचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो
दुल्ले ने धी व्याही हो
# महादेव और माता सती की कथा
हिंदू धर्म में प्रचलित कथाओं अनुसार राजा दक्ष ने अपने घर में यज्ञ करवाया। जिसमें उन्होंने अपने दामाद महादेव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास आकर पूछती है कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया? तो राजा दक्ष सती और भगवान शिव की निंदा करते हैं। इससे सती आहत होती है और अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाती है और उसी यज्ञ में कूदकर खुद को भस्म कर लेती हैं। जिसके बाद भगवान शिव ने अपने अंश अवतार वीरभद्र को उत्पन्न कर यज्ञ का विध्वंस करा दिया। ऐसा कहा जाता है तब से ही माता सती की याद में लोहड़ी पर आग जलाने की परंपरा है।
# भगवान कृष्ण का राक्षसी लोहिता की कथा
प्रचलित लोक कथा के अनुसार मकर सक्रांति के दिन कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था। जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। लोहिता के आतंक से मुक्त होने के पश्चात गांव वालों ने खुशी में आपस में मिठाइयां बांटी। उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।
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