स्वतंत्रता की खोज
'स्वतंत्रता ' शब्द है बड़ा अनोखा
'स्व ' का 'तंत्र ' बनाए स्व का लेखा- जोखा
पर क्या यह शब्द है बिल्कुल खोखा ?
जो दे रहा है हर किसी को धोखा
जी हां! आखिर कहां है स्वतंत्रता ?
क्या घर में ? ऑफिस में, रिश्तों में, नातों में , प्यार में , व्यवहार में , है विचारों की स्वतंत्रता ?
या फिर यह स्वतंत्रता है सिर्फ एक भुलावा
जो गरीब के हाथ में है विकास का छलावा,
सड़कों के गड्ढे, मास्टर के डंडे,
पेड़ों के आम या बीयर के जाम
आखिर इस स्वतंत्रता को कहां ढूंढे?
क्या एक सैनिक की कुर्बानी में है ये स्वतंत्रता ?
या एक नेता कि बेईमानी में झलकती है ये स्वतंत्रता
मुझे भी इसे पाना है और ज़माने से टकराना है
पर इसका क्या पता - ठिकाना है ?
शायद आसमान में उड़ते पंछी को है स्वतंत्रता
या फिर फूलों पर मंडराती तितली को मिली है ये स्वतंत्रता
नदी की कलकल, पवन की सन्न - सन्न में भी झलकती है ये
परन्तु ज़िंदा लोगों की आंखों में दम तोड़ती है ये
वहां नज़र आती है तो केवल और केवल एक घुटन
एक भूख, एक हवस, एक वहशीपन
जो नहीं बख्श ती किसी परी, किसी निर्भया को
जो नहीं मानती मर्यादा की किसी रेखा को,
क्या ऐसे ही लोगों के हाथों में खिलौना बनकर रह गई है स्वतंत्रता ?
क्या फिल्मी लोगों और बुद्धिजीवियों के पास है ये स्वतंत्रता ?
जो हर छोटी बात पर बवाल मचा देते हैं
और अपने दिमाग का दिवालियापन जता देते हैं
अरे ! कोई तो बताओ इन बुद्घिमानों को
नफ़रत का ज़हर वतन में फैलाने वालों को
पर्दे और सच्चाई में ज़मीन आसमान का फर्क है ।
और अगर इसे न समझें तो संस्कृति का बेड़ागर्क है
अरे ! समझो बुद्धि का संकुचित रहना ही है परतंत्रता
और अपने ही आप को सही कहना है परतंत्रता
परतंत्रता और स्वतंत्रता में है बहुत ही सूक्ष्म अंतर
केवल कपड़ों को शरीर से हटाना ही नहीं है स्वतंत्रता
और ना ही कपड़ों के ढेर तले किसी को दबाना है स्वतंत्रता
वास्तव में ' स्वतंत्रता ' से किसी के विचारों को अपनाना है स्वतंत्रता
किसी की आंखों में अपनापन जगाना है स्वतंत्रता
स्वतंत्रता जयघोष है, मान है, स्वाभिमान hai
स्वतंत्रता को वहां ढूंढो जहां कोई सच्चा इंसान है
आखिरकार ' स्वतंत्रता ' की खोज पूरी हो गई
और मैं भी शब्दों के इस शब्दजाल से स्वतंत्र हो गई ।
सीमा कौशिक
दिल्ली
Email i.d - skaushiko11@gmail.com
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