शीर्षक- नारी सम्मान

 

नारी की अस्मिता-सम्मान-संस्कार

को लेकर बात करे यह संसार।

घर की स्त्री इज्जत है कहना तो आसान है

किसी के घर पर पत्थर ना फेंको

क्या कहा किसी ने यह पुरूष को-

स्त्री के सम्मान बिना मनुज मन होता श्मशान है।

जो स्वयं का सम्मान नहीं करता है

उसी के मन में ऐसा कचरा भरता हेै।

जो मात-बहन-पत्नी का न माने नाता

वही दरिंदा हेै बन जाता।

दरिन्दा बनने के लक्षण घर में ही दिख जाते हैं।

जैसे पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं।

इन लक्षण को मात-पिता परिवार ओ जन

सब इसके जिम्मेदार है।

बेटे को न देना अच्छी सीख सामाजिक अपराध हेै।

दरिन्दों को जब तक न कठोर सामाजिक दण्ड होगा

तब तक यह अत्याचार नहीं बन्द होगा।।

स्वरचित व मौलिक- गोविन्द पाण्डेय, पिथौरागढ़, उत्तराखंड।

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