हिंदी कविता - खुद से बेहतर
मैं किसी से प्रतिस्पर्धा में नहीं,
किसी दौड़ में भी नहीं शामिल ,
नहीं चाहती बनना किसी से बेहतर,
सोचती हूं बैठकर अक्सर,
चरित्र नहीं मेरा किसी पर निर्भर,
रोशन करूं इसे जैसे दिवाकर,
जो कल थी, जो आज हूं चलूं उससे आगे कहीं ,
देखूं आसमां में पंख फैलाकर।
अनाधिकार, इच्छाओं, अपेक्षाओं का आवरण हटाऊँ
प्रकृति प्रेम के प्रकाश पुंज में उड़ती जाऊँ।
निज हृदय धरा पर ज्ञान गंगा बहाऊँ।
मैं किसी से प्रतिस्पर्धा में नहीं,
ना किसी दौड़ में शामिल।
ना किसी से कमतर,ना उच्चतर।
देख कर अपना स्तर ...............
बस बनना है, खुद से बेहतर ............
खुद से बेहतर ।
कवयित्री - मधुबाला |
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