आए थे तुम जब
स्वागत हुआ था तब।
आगमन पर वर्ष के
क्षण होते हैं हर्ष के।।
पर क्षण जो थे इस वर्ष के
आगमन पर फीके पड़े थे हर्ष के।
फिर जैसे-जैसे समय बीता,
सभी ने वास्तव में ही जीना सीखा।
एक दौर जो दिखावे का था
विश्व में शोर-शराबे का था
प्रदूषण सब ओर व्याप्त था
धरती पर बढ़ता ताप्त था।
यह सब स्थिर और
अविचल हो गया।
सर्वेसर्वा मानव भी
घर में ही कैद हो गया।
इस तरह हे वर्ष बीस
कैसे कहें रह गई टीस
उन्नीस-बीस का फर्क भी
अब समझ हेै आने लगा
जब बीस-इक्कीस है होने लगा।
तुम जाओ बीस विदाई तुमको देते हैं
सीख तुम्हारी दी हुई हम लेते हैं।
उन्नीस-बीस-इक्कीस का
अंतर और आगे देखते हैं
हे बीस! तुम्हें सादर विदाई देते हैं।
सादर विदाई देते हैं।
स्वरचित-गोविन्द पाण्डेय, पिथौरागढ़,उत्तराखण्ड।
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