ये मजदूर......
पर्वत की तरह मजबूत, साहसी,अटल, कर्मठ, कर्मण्य, सहनशील.....
न जाने कितने घरों, भवनों अट्टालिकाओं का निर्माण किया होगा इसने....
न जाने कितने गांव, देश बसाए होंगे इसने...
किंतु कैसी है यह भाग्य की विडंबना
जिस सृष्टि कर्ता, भाग्यविधाता के लिए निर्मित किए इसने
गुरुद्वारे, गिरजाघर, मंदिर, मस्जिद उसी ने नहीं ली इसकी सुध...
इसके बच्चे लू के थपेड़े, बारिश, रेत, गिट्टी में हंसते-खेलते न जाने कब पलकर बड़े हो जाते...
यह तो इसे भी नहीं पता...
बच्चे जब ऊंची-ऊंची इमारतों को निहारते प्रश्न करते,
पिताजी! क्या यह हमारा घर है..? हम इसमें रहेंगे...
पिता तब चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कान लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह जाता और अपने काम में जुट जाता...
ये मजदूर....
पर्वत की तरह मजबूत साहसी अटल.....
शैलजा दुबे
शिक्षिका
बड़वाह (म. प्र.)
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