परिवर्तन प्रकृति का नियम है
ये ऋतुएं हमे सिखलाती हैं
सभी ऋतुएं होती है खास
पर शीत ऋतु की कुछ अलग ही बात
सर्दी की ऋतु मनमोहक लगती है
पर शीत हवा मन को विचलित करती है
दिन लगता है जल्दी जाने,
रात लगती है पैर फैलाने
सन-सन कर ठण्डी हवा सताती
भीनी-भीनी धूप की याद दिलाती
अच्छे नही लगते रोजमर्रा के काम
मन कहे रजाई में घुसकर करें आराम
सुबह-शाम कोहरा छा जाता
हाथ-पैर सब ठंडाने लगता
कोहरे का साया ऐसा गहराता
सूरज की लालिमा को भी ग्रस जाता
ठंड की शीत लहर जब चलती
घर में दुबक जाती जिंदगी
दांत लगते किटकिटाने
सांसें लगती धुआं उड़ाने
धूप लगती सबको भाने
बादल लगते मल्हार गाने
गर्म-गर्म चाय को पीकर
सूरज खेलता आँख मिचौली,
व्यथित होते सारे नर नारी
कंपकपाती सर्दी आती
ओस की बूंदे घास सजाती
बर्फ भी पर्वत पर अपना
सुन्दर सलौना दरबार सजाती
स्व रचित कविता
मीनू सरदाना (शिक्षिका )
गुरुग्राम
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