भारत की धूमिल होती सभ्यता और संस्कृति को पुनर्जीवित करती वर्तमान परिस्थितियाँ

संस्कारों से पोषित ,यह हमारी विश्व की महान संस्कृति है |

समता ,ममता और आचार: परमो धर्म: का पाठ  पढाने  वाली 

उदारता ,मानवता, सत्य -अहिंसा पर चलना ही हमारी संस्कृति की पहचान है |

प्रकृति बदलती है क्षण- क्षण  तो हम भी बदलते जा रहे थे 

पश्चिमी सभ्यता को  अपना कर हम अपना गौरवातीत खोते जा रहे थे |

जीवन में परिवर्तन लाकर परम्पराओं से ऊपर उठ कर अपना स्टैंडर्ड  बना रहे थे |

बच्चों को  गाय का दूध न देकर सोया मिल्क पिला अपनी शान बढ़ा रहे थे|

प्यास के नाम पर सोफ्ट ड्रिंक पीना स्टैंडर्ड बनता जा रहा था, 

गन्ने का रस, फलों का जूस पीना मानों लो स्टैंडर्ड था|

माँ को MOTHER पिता को DAD बुला अपनी संस्कृति को भुलाते जा रहे थे|    

खुशियाँ ढ़ूंड रहे थे  हम मॉल और सिनेमा घरों मे, संयुक्त परिवार मे  रहना बोझ बन रहा था |

चारो ओर होता जा रहा था अग्रेजी का बोलबाला हिन्दी बोलने वाले का गोरा मुख भी लगता था काला 

सब कुछ बदल रहा था तभी प्रकृति नें भी करवट ली |

समय बदला ,समय बदला अच्छी लगने लगी अपनी संस्कृति 

जो उडाते थे मजाक हमारी सभ्यता और संस्कृति का 

वही आज  भारत के आगे  नतमस्तक है |

वे जो पश्चिमी सभ्यता में रंग कर सिखाते थे हमें  manners ( शिष्टाचार )

वही आज हमारे संस्कारों का कर रहे हैं अनुकरण |

हम अपनी सभ्यता और संस्कृति इसलिए छोडते जा  रहे थे क्योंकि हम स्वार्थी, सुविधाभोगी और आलसी होते जा रहे थे |

सोच रहा था इन्सान कि उसने जीत लिया है सारा जहान 

जानवर मान कर लील लिए उसके प्राण|

वर्तमान परिस्थिति ने सबको सात्विक बना दिया है, 

चूमना , गले लगाना छोड हाथ जोडना सीखा दिया है, 

उपनिषदों, पुराणो का मनन करना  सीखा दिया है,

जंक फूड के खाने की जगह घर का पौष्टिक खाना खाना सीखा दिया है |

परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनं को लक्ष्य मानकर 

धूमिल होती सभ्यता और संस्कृति को पुनर्जीवित करना सीखा दिया है ||



मीनू सरदाना (शिक्षिका)





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