बचपन का हर पल निराला
बचपन है कुदरत का अनमोल खजाना
चलो चले बचपन की छाँव में ,सपनों के गाँव में ,
माँ की डाँट पापा का प्यार,
भाई बहन का नटखट व्यवहार,
बिना किस्से कहानी सुने नींद न आना,
लोरी सुन माँ की गोद में सो जाना
सबसे सुनहरा पल है ये बचपन
केवल खेल -खिलौने हैं भाते दोस्तों के संग समय बिताते
छुपन -छुपाई, पकड़म- पकड़ाई
कभी गिल्ली- डंडा तो कभी नदी पहाड़,
वो पतंग बाजी करना जब कट जाए तो दौड़ लगाना,
वो राजा- मन्त्री-चोर- सिपाही,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी|
वो कैरम की गोटी वो आँख मिचौली,
थर्मामीटर तोड़ पारा निकालना,
नंबर काम आने पर खुद ही बढ़ा लेना|
बस खेल खिलौने ही भाते दोस्तों के संग समय बिताते,
फिक्र नही कल की, न किसी से गिला, न किसी से शिकवा करना,
छोटी- छोटी खुशियों में हँसना, जरा सी चोट पर आँसू बहाना|
हर चीज को पाने का हठ करना,
अपनी ही धरती अपना आसमाँ मान लेना |
अपनी ही दुनिया और खुद को शहजादा समझना
अपने -पराए का भेद नही नाराज होकर खुद ही मना लेना|
नए वस्त्र पहनने का मन ललचाना
पुराने कपड़ो को देख नाक -भों सिकोड़ना
बस खेल-खिलौने ही भाते दोस्तों के संग समय बिताते,
बचपन ही है एक सफर सुनहरा|
बचपन है कुदरत का अनमोल खजाना|
स्व रचित कविता
मीनू सरदाना (शिक्षिका )
गुरुग्राम
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