बहुत हुई बेचारगी,
अब दिखा तूं बेखुदी,
बहुत जिए दूसरों के लिए,
अब अपने लिए दीवानगी।
चल जुनूं में बह ले अब,
देख अब मस्तानगी।
फिक्र अब हवा कर दे,
जीवन में अब रवानगी।
झाड़ बुढ़ापे की धूल को,
ले आ जवानी की ताज़गी।
कर्म को पूजा बहुत,
अब अपनी कर बंदगी।
ज़माने ने की है दिल्लगी,
जी अब अपनी ज़िंदगी।
चल उठा ले अब कलम,
साफ़ कर ज़माने की गंदगी।
संजीदगी दिखा चुके,
दिखा अब नाराज़गी।
बन खुली किताब अब,
बहुत हुई पोशीदगी।
सादगी से जी लिए,
देख अब यह बानगी,
देख अब यह उम्दगी।
ग़मो की बर्ख़ातगी,
खुशी की परवानगी।
सत्कर्म की हो पेशगी,
ईश्वर को हो सुपुर्दगी।
द्वारा- अंजू जुनेजा प्रशिक्षित स्नातक शिक्षिका हिंदी केंद्रीय विद्यालय बेली रोड पटना।
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