हिंदी कविता - बाल दिवस

 

बच्चे होते मन के सच्चे , माँ -बाप के दुलारे बच्चे |

करते इरादे बहुत ही पक्के , धागे नही होते ये कच्चे |

ईश्वर, अल्लाह् , ईसा ,गुरुनानक का रूप हैं इनमें

कितनी सच्चाई होती हैं  इनके रूप में ,

न  कोई  छलकपट  होता  मन  में , 

कच्ची मिटती सा होता है बच्चों का आकार, 

सच्चे सांचे में ढले बस यही है दरकार |

बच्चों के मन में बसते हैं सदा भगवान 

यदि ये पा गए संस्कार तो देश बन जाएगा महान |

हम भी मिलकर क्यों न बनाए ऐसा संसार ,

विश्व बंधूत्व की भावना हो  रहे छलकता सदा प्यार | 

कोमल से फूल हैं  भारत के खिलते कमल हैं ये बच्चे|

पड़े जरुरत अगर देश को तो पहन ले वीरो का भी वेश ये बच्चे|

मातृ भूमि के लिए करके सर्वस्व बलिदान, 

अपनी माँ की रख सकते हैं ऊची शान| 

बच्चे हैं कर्णधार कल के भावी भारत की आशा हैं| 

इनसे ही बढ़ता संसार हम सब की अभिलाषा हैं| 

देश खुशहाल  होगा तब

 हर कोई बाल दिवस का महत्त्व समझेगा जब 

न हो अत्याचार ,अन्याय से भरा इनका जीवन , 

आओ करे प्रतिज्ञा न होने देगें इनका शोषण | 

जीवन बहुत अनमोल है इनका यू ही न व्यर्थ जाए |

देश के भविष्य हैं ये शक्तिशाली युग की ताकत बन जाए |



 मीनू सरदाना (शिक्षिका )

गुरुग्राम








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