अपने गाँव से, गाँव में बसते हिन्दुस्तान के दर्शन करवाती हूँ |
मै तुम्हे प्रकृति के अनुपम उपहार अपने गाँव की अद्भुत छटा दिखलाती हूँ|
कितना सुन्दर कितना प्यारा है ये मेरा गाँव
घने बरगद की मिलती है यहाँ छाँव |
यहाँ की सुबह बडी निराली लगती है
अपनापन और खुशियाँ बाँटती है |
सृष्टि का नैसर्गिक सौन्दर्य ,आम मञ्जरी का माधुर्य मन विभोर कर जाता है|
सकून का जीवन ठंडी हवा के छूने से मिल जाता है|
होते है यहाँ मिट्टी के मकान ,
सुख- दुख होता सबका एक समान |
वो माटी की खुशबू वो शाम सुहानी ,
जहाँ आज भी मिलता है घड़े का पानी
सामाजिक विषयों पर बहस करती बुजुर्गो की टोलियाँ
अच्छाई ,बुराई समझाती दादी नानी की कहानियाँ
मिट्टी के चूल्हे पर बनती रोटियाँ,माँ जहाँ गाती हैं मीठी लोरियाँ
वो गोधूली में घर आते पशुओं की आवाजे
बड़े- बड़े मसलों को मिनटों में हल करती पंचायते
ताश और हुक्को की गुडगुड़ाहट
रौनक करता गाँव का हाट
ढलता सूरज, घोंसलों में लोटते पंछियों का शोर,
कच्चे रेशम की नहीं है, ग्रामीणों के प्यार की डोर।
अपना -पराए का भेद नही
मानवता यहाँ घर -घर में बसती
छोटे-बड़ों को आदर ,बुजुर्गों को मिलता है सम्मान
पीपल की छाँव, सुन्दर -सुन्दर खेत खलियान
लहलहाती फसलें यहाँ की पहचान
मुझको है अपने गाँव पर अभिमान |
सभ्यता संस्कृति का पाठ पढाता
स्वर्ग से सुन्दर है मेरा गाँव
यह है हर भारतीय की पहचान |
स्वरचित कविता
मीनू सरदाना ( शिक्षिका )
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